माँ !
कहाँ से लाती हो इतनी शक्ति कहाँ से लाती हो इतना प्यारकहाँ से लाती हो इतना समर्पण और कहाँ से लाती हो इतना त्याग ?
रोज सवेरे पहले उठकर और लेकर ईश्वर का नाम
बिना स्वार्थ के लग जाती हो करने हम सबके तुम काम.
चूल्हा-चोका, झाड़ू, बर्तन घर में होते ढेरों काम
बन मशीन तुम चलती रहती तुम्हे नहीं कोई आराम.
तुम्हे ना देखा मैंने करते बीमारी का कोई बहाना
जैसे हम बच्चे करते हैं ओढ़ के चद्दर झट सो जाना.
नहीं तुम्हारी कोई इच्छा नहीं तुम्हारा कोई सपना
हम सबके जीवन को तुमने मान लिया है जीवन अपना.
बरसाती हो प्यार अनोखा जैसे शीतल हवा का झोंका
आने वाली हर विपदा को तुमने आगे बढ़कर रोका.
तेरे आँचल की छाया में आती सबसे गहरी नींद
हर संकट में बनती हो तुम सबसे पहली उम्मीद.
हर मुश्किल में आती हो सबसे पहले तुम ही याद
माँ मुझको तुम लगती हो ईश्वर की कोई फरियाद.
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